Sanskrit Story
The present lesson of the Sanskrit story literature series, Amritmala is a Sanskrit story taken from Panchatantra.
These stories give a working practice in Sanskrit grammar and increases the Sanskrit vocab of the beginners as well.
This is the story of a Brahmin who used to ask many questions. And one this very habit of too much inquiry rescued him from being killed by a demon.
हम पूर्व मे भी आपके लिए संस्कृत कहानियों के अनमोल खजाने से King’s Story Amritmala 4| नृपस्य कथा और A Successful Life Amritmala 3 | जीवन-साफल्यम् लेकर आए थे आज हम आपको संस्कृत कथा सुनाएंगे।
अमृतमाला के इस पाठ में हम पंचतंत्र से ली गई बहुत प्रश्न पूछने वाले एक ब्राह्मण की कथा पढ़ेंगे कि किस प्रकार से वह ब्राह्मण प्रश्न पूछने की आदत के ही कारण एक बार राक्षस के हाथों मरने से बच गया था।
संस्कृत कथा राजनीति, लोकनीति और व्यवहार नीति का ज्ञान देने वाली है। संस्कृत व्याकरण के अभ्यास की दृष्टि से भी ये कथाएँ बड़ी सरल, सुगम व रुचिकर हैं, और इनको बड़ी सरलता से समझा भी किया जा सकता है।
कस्मिंश्चित् वनप्रदेशे चण्डकर्मा नाम राक्षसः वसति स्म। सः भयानकः राक्षसः वनप्रदेशं प्राप्तान् जीवान् हत्वा भक्षयति स्म। एकदा कश्चित् ब्राह्मणः वने भ्रमन् तत्र आगतः, तेन राक्षसेन दृष्टः ग्रहीतः च। ततः राक्षसः तस्य ब्राह्मणस्य स्कन्धम् आरुह्य उवाच – “भो ! अग्रेसरः चल।” भयत्रस्तमनाः ब्राह्मणः तम् आदाय प्रस्थितः। अथ तस्य राक्षसस्य कोमलौ पादौ दृष्ट्वा ब्राह्मणः राक्षसम् अपृच्छत् – भो ! ते पादौ एवंविधौ कमलकोमलौ किम्?
किसी वनप्रदेश में चण्डकर्मा नामक राक्षस बसता था। वह भयानक राक्षस वनप्रदेश में आए हुए जीवों को मारकर खा जाता था। एक बार कोई ब्राह्मण वन में घूमता हुआ वहाँ आ गया, उस राक्षस के द्वारा देख लिया गया और पकड़ लिया गया।
तब राक्षस उस ब्राह्मण के कंधे पर चढ़कर बोला – अरे! आगे को चलो। भयभीत मन वाला ब्राह्मण उसे लेकर चल पड़ा।
अब उस राक्षस के कोमल पैरों को देखकर ब्राह्मण ने राक्षस से पूछा –अरे! तुम्हारे पैर इस तरह के कमल के समान कोमल कैसे हैं?
नमः संस्कृताय जयतु भारतम्
गुरवे नमः