Sanskrit Katha Lion-Mongers 14 | सिंहकारक कथा

The present lesson of the Sanskrit Katha literature series, Amritmala is a Sanskrit story taken from Panchatantra.

These stories give a working practice in Sanskrit grammar and increases the Sanskrit vocab of the beginners as well.

This is the story of the sons of a Brahmin who revived a dead lion, using their extra-physical divine knowledge.

अमृतमाला के इस पाठ में हम पंचतंत्र से ली गई शेर बनाने वाले ब्राह्मण के पुत्रों की कथा पढ़ेंगे कि किस प्रकार से उन लोगों ने एक मारे हुए शेर को जीवित कर दिया था। शास्त्र के ज्ञान से उनको कोई लाभ न हुआ बल्कि उल्टे हानि ही हुई।

अमृतमाला के पिछले अध्याय मे हमने संस्कृत मे पहेलियाँ श्रवण की, आज इसी क्रम मे आगे बढ़ते हुए हम संस्कृत सिंहकारक कथा का श्रवण करेंगे।

संस्कृत कथा राजनीति, लोकनीति और व्यवहार नीति का ज्ञान देने वाली है। संस्कृत व्याकरण के अभ्यास की दृष्टि से भी ये कथाएँ बड़ी सरल, सुगम व रुचिकर हैं, और इनको बड़ी सरलता से समझा भी किया जा सकता है।

कस्मिंश्चित् नगरे चत्वारः ब्राह्मणपुत्राः वसन्ति स्म।

ते परस्परम् मित्रभावेन वर्तयन्ति स्म। तेषाम् त्रयः शास्त्रपारंगताः किन्तु बुद्धिरहिताः।

एकः तु बुद्धिमान् किन्तु शास्त्रविमुखः।

अथ कदाचित् तैः मित्रैः मन्त्रितम् – कः लाभः विद्यायाः यदि देशान्तरम् गत्वा अर्थोपार्जनम् न क्रियते।

तत् वयम् पूर्वदेशम् गच्छामः।

तथा निश्चयम् कृत्वा ते पूर्वदेशम् प्रति प्रस्थिताः।

तेषाम् ज्येष्ठतरः प्राह- अहो, अस्माकम् एकः शास्त्रज्ञानरहितः, केवलम् बुद्धिमान्।

नृपाः च विद्यया एव प्रीताः भवन्ति।

अहम् स्वोपार्जितम् धनम् अस्मै न दास्यामि।

तद् गच्छतु गृहम्। ततः द्वितीयेन अपि कथितम् –भो! सुबुद्धे!

गच्छ त्वम् गृहम् यतः ते विद्या नास्ति।

Sanskrit Katha Lion-Mongers

किसी नगर में चार ब्राह्मणपुत्र निवास करते थे। वे आपस में मित्रभाव से बर्ताव करते थे। उनमें तीन शास्त्र के पारंगत किन्तु बुद्धिरहित थे। और एक बुद्धिमान तो था, किन्तु शास्त्र से विमुख था।

अब किसी समय उन मित्रों के द्वारा सलाह की गई- विद्या का क्या लाभ है यदि दूसरे देश में जाकर धन का अर्जन न किया जाता है। तो हम पूर्वदेश को जाते हैं।

वैसा निश्चय करके वे पूर्वदेश की ओर चल पड़े। उनमें से सबसे बड़ा बोला- अहो, हमारे में एक शास्त्रज्ञान से रहित है, केवल बुद्धिमान है। और राजे विद्या से ही प्रसन्न होते हैं।

मैं अपने कमाए हुए धन को इसके लिए नहीं दूंगा। इसलिए यह घर को चला जाए। उसके बाद दूसरे के द्वारा भी कहा गया – हे सुबुद्धे! चला जा तू अपने घर को, क्योंकि तेरे पास विद्या नहीं है।

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